दुष्यंत कुमार का जन्‍म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। दुष्यंत जी की आरंभिक शिक्षा छ: वर्ष की आयु में ‘नवादा प्राथमिक विद्यालय’ से शुरू हुई। इसके पश्चात उन्होंने ‘चंदौसी इंटर कॉलेज’ से सेकंडरी की परीक्षा पास की। इसी दौरान उनके काव्य लेखन की शुरुआत भी हो चुकी थी। 12वीं कक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने पढ़ाई का सिलसिला जारी रखा और ‘प्रयाग विश्वविद्यालय’ से हिंदी, दर्शनशास्त्र व इतिहास विषय में तृतीय श्रेणी के साथ BA की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से ही द्वितीय श्रेणी में एम.ए की परीक्षा पास की। बता दें कि यहीं से उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ हुआ और उनके लेखन को एक नया आयाम मिला। अपने अध्ययन के दौरान दुष्यंत कुमार साहित्यिक संस्था ‘परिमल’ की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और ‘नए पत्ते’ जैसे महत्वपूर्ण पत्र से भी जुड़े रहे। इस समय उन्हें मार्गदर्शक के रूप में ‘डॉ.रामकुमार वर्मा’, ‘डॉ. धीरेंद्र कुमार शास्त्री’ व ‘डॉ. रसाल’ मिले तो सहपाठी के रूप में ‘कमलेश्वर’, ‘मार्केंडय’ और ‘रवींद्रनाथ त्यागी’ का सानिध्य प्राप्त हुआ।

आर्थिक रूप से संपन्न और पढ़ें लिखे होने के कारण उनका परिवार के कृषि व्यवसाय में मन नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने ‘ऑल इंडिया रेडियो’ में एक सामान्य पद के कर्मचारी के रूप में नौकरी की शुरुआत की। यहाँ कुछ समय तक कार्य करने के बाद उन्होंने इस कार्य से इस्तीफा दे दिया और ‘किरतपुर इंटर कॉलेज’ में अध्यापन कार्य की शुरुआत की। किंतु इस कार्य को भी उन्होंने कुछ समय बाद छोड़ दिया जिसके बाद वह कालांतर में आकाशवाणी दिल्ली में नौकरी करने लगे। यहाँ कुछ समय तक कार्य करने के बाद उनका भोपाल केंद्र में ट्रांसफर हो गया जहाँ उन्होंने रेडियो के लिए ध्वनि नाटक लिखे। इसके पश्चात दुष्यंत जी ने आकाशवाणी में सहायक निर्माता का पद छोड़ दिया और ट्रायबल वेलफेयर में डिप्टी डायरेक्टर का पदभार संभाला। किंतु अपने विद्रोही व्यवहार के कारण उन्होंने इस नौकरी को भी कुछ समय बाद ही छोड़ दिया। फिर उन्होंने कुछ वर्षों तक मध्य प्रदेश के राजभाषा विभाग में सहायक निर्माता के रूप में कार्य किया। दुष्यंत जी का अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान ही ‘राजेश्वरी’ जी से विवाह हुआ था। इसके बाद दोनों ने विवाहोपरांत साथ मिलकर बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने दांपत्य जीवन में उन्होंने तीन संतानों को जन्म दिया।

आधुनिक हिंदी साहित्य में दुष्यंत जी का पर्दापण होने के बाद उन्होंने अपनी आरंभिक रचनाएँ ‘परदेसी’ के नाम से लिखी थी। किंतु कुछ समय बाद उन्होंने अपने उपनाम ‘दुष्यंत कुमार’ से ही लिखना शुरू कर दिया। दुष्यंत कुमार ने हिंदी साहित्य जगत में कई विधाओं में रचनाएँ की जिनमें उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, गीति नाट्य और गजल विधा शामिल हैं।

गजल-संग्रह

साये में धूप

उपन्यास

छोटे-छोटे सवाल
आँगन में एक वृक्ष
दुहरी ज़िंदगी

काव्य-संग्रह

सूर्य का स्वागत
आवाज़ों के घेरे
जलते हुए वन का वसंत

गीति नाट्य

एक कंठ विषपायी

नाटक
और मसीहा मर गया

कहानी-संग्रह
मन के कोण

हिंदी साहित्य में गजल विधा के पुरोधा दुष्यंत जी के सम्मान में भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया गया था